गणगौर पर्व में कोरोना से मुक्ति की प्रार्थना की

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ByNews14india/शरनजीत तेतरी

रायपुर। गणगौर प्रेम एवं पारिवारिक सौहाद्र का एक पावन पर्व है, जिसे की राजस्थान, हरियाणा, मालवा, मध्यप्रदेश के लोगों द्वारा मनाया जाता है. गणगौर बना हुआ है दो शब्दों के मिलने से, गण और गौर. इसमें गण शब्द से आशय भगवान शंकर जी से है और गौर शब्द से आशय माँ पार्वती से है.

गणगौर राजस्थान एवम् आस पास के लगे क्षेत्रों का मुख्य पर्व है और वहां इसकी काफी मान्यता है. इसे राजस्थान में आस्था के साथ मनाया जाता है. इस दिन गणगौर की पूजा की जाती है, लड़कियां एवं महिलाएं शंकर जी एवं पार्वती जी की पूजा करती हैं. गणगौर पर्व से भगवान शंकर और माता पार्वती की कहानी जुड़ी हुई है इसीलिए इस पर्व की हिन्दू धर्म में काफी मान्यता है.

गणगौर पर्व कैंसे मनाया जाता है?
गणगौर में गण शब्द से आशय भगवान शंकर जी से है और गौर शब्द से आशय माँ पार्वती से है. यह पर्व 16 दिनों तक लगातार मनाया जाता है. इस पर्व को महिलाएं सामूहिक रूप से 16 दिनों तक मनाती हैं. इस दिन भगवान शिव की और माता पार्वती की पूजा की जाती है.

इस पर्व में जहाँ कुंवारी लड़कियां इस दिन गणगौर की पूजा कर मनपसंद वर की कामना करती हैं, वहीँ शादीशुदा महिलाएं इस दिन गणगौर का व्रत रख अपने सुहाग की लंबी उम्र की कामना करती है.

इस दिन महिलाएं गणगौर मतलब शिव जी और मां पार्वती की पूजा करते समय दूब से दूध की छांट देते हुए गोर गोर गोमती गीत गाती हैं. नवविवाहित महिलाएं पहला गणगौर का पर्व अपने पीहर आकर मनाती है. गणगौर की पूजा में लोकगीत भी गाये जाते हैं जो इस पर्व की शान है.

गणगौर क्यों मनाया जाता है?
बहुतों के मन में ये सवाल जरुर आता होगा की आखिर में गणगौर क्यूँ मनाया जाता है? गणगौर पर्व के साथ मान्यता है कि इस दिन कुंवारी लड़कियां गणगौर की पूजा करती हैं तो उन्हें मनपसंद वर की प्राप्ति होती है और शादीशुदा महिलाएं यदि गणगौर पूजा करती हैं और व्रत रखती है तो उन्हें पतिप्रेम मिलता है और पति की आयु लंबी होती है.

गणगौर पर्व 16 दिनों तक लगातार धूम धाम से मनाया जाता है. राजस्थानी में कहावत है ‘तीज तींवारा बावड़ी, ले डूबी गणगौर‘ अर्थ है कि सावन की तीज से त्योहारों का आगमन शुरू हो जाता है और गणगौर के विसर्जन के साथ ही त्योहारों पर चार महीने का विराम आ जाता है.

गणगौर कब मनाया जाता है?
गणगौर पर्व 16 दिनों तक लगातार मनाया जाने वाला पर्व है. गणगौर पर्व होली के दूसरे दिन से ही शुरू हो जाता है और होली के बाद 16 दिन तक लगातार मनाया जाता है. गणगौर का पर्व हिंदी कैलेंडर के हिसाब से चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया को से मनाना शुरू किया जाता है. पुराणों के अनुसार गणगौर पर्व का प्रारंभ पौराणिक काल से हुआ था और तब से अर्थात कई वर्षों पूर्व से हर वर्ष मनाया जाने वाला पर्व है.

जो महिलाएं गणगौर की पूजा करती है वे महिलाएं अपने पूजे हुए गणगौर को चैत्र शुक्ल पक्ष की द्वितीया अर्थात होली के दिन किसी नदी या सरोवर जाकर पानी पिलाती है और चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया को सायंकाल में गणगौर की मूर्ति का विसर्जन कर देती हैं.

गणगौर की कहानी
माना जाता है कि प्राचीन से समय माता पार्वती ने भगवान शंकर जी को वर (पति) के रूप में पाने के लिए बहुत तपस्या और व्रत किया. फलस्वरूप माता पार्वती की इस तपस्या और व्रत से प्रसन्न होकर माता पार्वती के सामने प्रकट हो गए. भगवान शिव जी ने माता पार्वती से वरदान मांगने का अनुरोध किया. वरदान में माता पार्वती जी ने भगवान शंकर जी को ही वर के रूप में पाने की अभिलाषा की. माता पार्वती की इच्छा पूरी हुई और मां पार्वती जी का विवाह भोलेनाथ के साथ सम्पन्न हुआ.

मान्यता है कि भगवान शंकर जी ने इस दिन माँ पार्वती जी को अखंड सौभाग्यवती होने का वरदान दिया था. मां पार्वती ने यही वरदान उन सभी महिलाओं को दिया जो इस दिन मां पार्वती और शंकर जी की पूजा साथ में विधि विधान से करें और व्रत रखें.

गणगौर व्रत कैसे रखा जाता है?
गणगौर त्यौहार में इसकी व्रत की अलग ही महत्व है.चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी को व्रतधारी महिलाएं प्रातः स्नान कर गीले कपड़ों में ही घर के पवित्र स्थान में लकड़ी की बनी टोकरी में जवांरे बोती हैं और इन जवांरो को ही गौरी (मां पार्वती) और ईशर (भगवान शंकर) का रूप माना जाता है. गणगौर का व्रत रखने वाली महिलाएं सिर्फ रात में एक समय का भोजन करती हैं. जवांरो का विसर्जन होने तक प्रतिदिन दोनों समय गणगौर की पूजा करने के बाद भोग लगाया जाता है.

गणगौर की स्थापना में सुहाग की वस्तुएं चढ़ाई जाती हैं एवं सुहाग की सामग्री का पूजन कर ये वस्तुएं गौरी जी को अर्पित की जाती हैं. इसके बाद गौरी जी को भोग लगाया जाता है फिर गौरी जी की कथा सुनी जाती है. कथा सुनने के बाद शादीशुदा महिलाएं चढ़ाए हुए सिंदूर से अपनी मांग भरती हैं.

गणगौर पूजा का महत्व
राजस्थान में गणगौर पूजा और व्रत का विवाहित महिलाओं के लिए विशेष महत्व माना गया है. मान्यता है कि गणगौर की पूजा और व्रत करने वाली महिलाओं को सदा सुहागन का वरदान हैं और कुवांरी लड़कियों को गणगौर पूजा करने से मनवांछित वरप्राप्ति होती है.

16 का महत्व..
इस पूजा में 16 अंक का भी विशेष महत्व माना गया है. सबसे पहली बाटो ये पर्व 16 दिनों तक लगातार मनाया जाता है. गणगौर की पूजा में गीत गाते हुए महिलाएं काजल, रोली और मेहंदी से 16-16 बिंदी लगाती हैं. गणगौर में चढ़ने वाले फल व सुहाग के सामान की संख्या भी 16-16 ही रहती हैं. महिलाएं भी इस दिन 16 श्रंगार में नजर आती है.

तीजणियों के घरों में गूंजा घुड़लो घुमेला जी घूमेला..
गणगौर पर्व में पूजा के समय लोकगीत भी गाये जाते हैं. गणगौर पर्व में गाये जाने वाले लोकगीतों को इस पर्व की जान कहते हैं. लोकगीतों के बगैर यह पर्व अधूरा है.
कोरोना संक्रमण एवम् लॉक डाउन के कारण महिलाएं गणगौर उत्सव अपने घरों पर ही मना रही हैं। कोविड-19 नियमों का पालन करते पारंपरिक परिधानों में सजी महिलाओं के कंठ से गुंजते गोर-गोर गोमती, म्हारा दादाजी के जी मांडी गणगौर, हिंगलू भर बालद लाया रे, नाना अमरसिंह पागां बांधे, माथन भांवर घड़ा री गणगौर, सोनी गढ़ को खड़को म्हे सुन्यो…भंवर म्हनै पूजण द्यो गणगौर..और सुहागिन बारै आव… घुड़लो घुमेला जी घुमेला..सहित गवर माता के पारम्परिक गीत गुंजायमान रहे। इन गीतों ने जैसे नगर की धरती पर राजस्थानी रंग बिखेर रखे हैं।

तीजणियों का उल्लास चरम पर
बदलते परिवेश में पूजन करने वाली महिलाएं गण अर्थात शिव व गौर यानी गौरी मां के साथ सेल्फी लेकर भोलेनाथ और गौरा की पूजा करती दिख जाती है। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया अर्थात कल 15 अप्रैल को गणगौर उत्सव का अंतिम दिन है। शहर की विभिन्न मोहल्लों, कालोनियों में निवास करने वाले परिवारों में पारंपरिक राजस्थानी वेशभूषा में सजी धजी महिलाओं ने सोशल डिस्टेंस का ध्यान रखते हुए घर पर ही गणगौर के बिन्दौळे भी निकाले। पूजन करने वाली प्रज्ञा राठी, शकुन राठी, पूनम राठी, बीना भंडारी, मीना सोनी, पूजा राठी, प्रेक्षा एवम् श्रेया राठी ने बताया कि वे सब मिलकर उत्साह के साथ गणगौर पूज रही है। इसमें कोरोना ने फिर से व्यवधान डाला है।

गणगौर पूजन में सजी गवर-ईसर की झांकियां
होली के दूसरे दिन से आरंभ हुआ गवर पूजन का समापन गणगौरी तीज को होगा। गणगौरी तीज की पूर्व संध्या पर गवर पूजने वाली तीजणियां पूरे एक पखवाड़े बाद गवर माता को पानी पिलाने के लिए विभिन्न धातुओं के पात्र लेकर पवित्र तालाब, कूवे से लोटियों को जल से भरने के बाद समूह के रूप में शीश पर रखकर गवर पूजन स्थल पहुंचती है और गवर माता को पानी पिलाने की रस्म पूरी करती है। लेकिन इस बार कोविड गाइडलाइन एवम् लॉक डाउन को देखते हुए पूजन स्थल पर ही जलाशय, कुवें को निमित्त कर परम्परा का निर्वहन किया जाएगा।

सूरज प्रकाश राठी– प्रचार प्रसार प्रभारी : माहेश्वरी सभा रायपुर.। सह मंत्री : छत्तीसगढ़ प्रदेश माहेश्वरी सभा.

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