वर्ल्ड टाइगर डे पर विशेष :-सफेद बाघ का बच्चा बच्चा जिसकी संतान है,उस “मोहन ” की कहानी

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ByNews14india/शरनजीत तेतरी

रायपुरवरिष्ठ पत्रकार अमित मिश्रा की कलम से वर्ल्ड टाइगर डे पर विशेष – दुनिया में सर्वप्रथम सफेद बाघ रीवा के राजा मार्तण्ड सिंह ने बांधवगढ़ में 27 मई 1951 को देखा और उसे पकड़ अपने गोविन्दगढ़ के किले में पालने के लिए रखा।

पहली बार मोहन को इस गुफा के पास पकड़ा गया

जिसे मोहन नाम दिया मोहन की माँ व् 2 बच्चे सामान्य दिखने वाले बाघ की तरह थे लेकिन मोहन ही मात्र सफेद था जिसे हम एल्विनो कहते है। मार्तण्ड सिंह ने अपने जीवन में 85 बाघ का शिकार किया लेकिन मोहन के बाद कभी बाघ का शिकार ही नही किया। बांधवगढ़ पूरी दुनिया को सफेद बाघ से परिचित कराने वाला आज स्वयं ही इनसे वंचित है ,म.प्र. शासन के अथक प्रयासों से बांधवगढ़ में पुनः सफेद बाघ की घर वापसी करने जा रही है।जो आने वाले सत्र में पर्यटकों को देखने को मिलेगा,

जान वन्य प्राणी विशेषज्ञ पुष्पराज सिंह

यह जान वन्य प्राणी विशेषज्ञ पुष्पराज सिंह एव पुलवा बैरिया के चेहरे बयां कर रही थी की वो कितने खुश है।

पुलवा बैरिया -जो की मोहन की देखरेख बचपन से मरने तक किया

पुलवा जो की मोहन की देखरेख बचपन से मरने तक किया और एकाएक मोहन की यादों में खो भावूक हो जाता है उन्होंने कहा की राजा साहब जब किले में आते और एकाएक सिटी बजाते मोहन उनकी तरफ देखने लगता था,मैंने मोहन को आखिरी साँस तक देखा है।
भारत के व्हाइट टाइगर मोहन ने कैसे दुनिया को सफेद बाघों की सौगात दी इस पर पुष्पराज सिंह ने बताया की मोहन ही एकमात्र शुद्ध रूप से भारतीय बाघ है। आज दुनिया में सफेद बाघ लगभग 300 के करीब है जिनमें अकेले भारत में ही 100 के पास है।अकेले मोहन से क्रास ब्रीडिंग के जरिए 21 सफेद बाघ तैयार किए जिसमे सर्वप्रथम मोहनी नाम की सफेद बाघिन को अमेरिका ने 1960 में 10 हजार डॉलर में खरीदा और उसके स्वागत में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति “अहसेंनहावर” ने अगुवानी की थी इसीलिए काफी अरसे तक भारत में लोगों की जुबां पर “मोहन जो दहाड़े अमेरिका भी आरती उतारे” यह कहा जाता था।
1967 यूगोस्लोवाकिया के राष्ट्रपति “टीटो” भी भारत आए और आघे घण्टे तक सफेद बाघ को देख निहारते ही रह गए थे।1970 तक सफेद बाघ एक तरह से दूत ( एम्बेसडर ) बन चुके थेऔर भारत का सफेद बाघ दुनिया के लिए व्हाइट मैजिक बन चूका था।
वन्य विशेषज्ञों का मानना है की पूरी दुनिया में सफेद बाघ अभी भी प्राकृतिक तौर पर शिकार नही कर पाते है जिसकी वजह से आज भी वे जू की शोभा दे रहे है। उसके पीछे कुनबे में क्रासब्रीडिंग से जन्मजात विकृतियां होती गई। परिणामस्वरूप सफेद बाघ शिकार करने में अक्षम हो गए लेकिन पूरी लीक से हटकर म.प्र. सरकार सफेद बाघों को एक बाड़े में रख जंगली बनाने की इंसानी कोशिस की जा रही है जो एक प्रकार से सफलता दिखाई दे रही है अभी पूरा कार्यक्रम गोपनीय रखा जा रहा है। लेकिन बहुत जल्द पर्यटको को खुले जंगल में देखने को मिलेगा। शायद ये पुरे विश्व् के लिए भी अजूबा होगा ! सफेद बाघ अपने रंगों की वजह से जंगलों में छुप नही पाते और इंसान आसानी से शिकार बना लेते।सामान्य बाघ के शरीर का रंग पीला संतरी और काली धारियां ही जंगलों में छुपाते है।1987 में मोहन पर भारत सरकार डाक टिकट भी जारी कर चुकी है।
फोटो – मोहन के मरने के बाद उसके सर की शील्ड, पहली बार मोहन को उस गुफा के पास पकड़ा गया, पुलवा बैरिया जो मोहन की बचपन से देखभाल की ।

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